झारखंड हाई कोर्ट ने ब्लैक फंगस मामले में स्वतः संज्ञान पर सुनवाई करते हुए कड़ी मौखिक टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा है कि मुख्यमंत्री के निजी सहायक (पीए) कहते हैं कि हमारे पास पैसा नहीं है, तो क्या हमारे नागरिक अपनी जगह और जमीन बेचकर अपना इलाज कराएं।
चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर मेरे पास पैसा होता तो मैं उस पीड़ित को पैसे देकर मदद करता। ब्लैक फंगस से पीड़ित उषा देवी के मामले में हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि पीड़ित महिला के इलाज की क्या व्यवस्था की गई है। सुनवाई के दौरान उपस्थित रिम्स डायरेक्टर से कोर्ट ने पूछा कि क्या आप शपथपत्र दायर कर यह जानकारी दे सकते हैं कि ब्लैक फंगस से जूझ रहे मरीज बाहर से दवा नहीं खरीद रहे।
रिम्स डायरेक्टर ने अदालत को बताया कि दवाइयों की सप्लाई पूरी नहीं है। इसलिए हम शपथपत्र दायर नहीं कर सकते है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से उपस्थित महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अदालत को बताया कि रिम्स में ब्लैक फंगस के जितने भी मरीज इलाजरत हैं, उनके लिए हर संभव व्यवस्था की जा रही है।
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि अगर ब्लैक फंगल को महामारी घोषित किया गया है, तो इससे निपटने के लिए क्या पॉलिसी है और सरकार के द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं। इसकी जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से दी जाए। अदालत ने झालसा को भी शपथ पत्र दायर कर यह बताने को कहा है कि ब्लैक फंगस से जूझ रहे मरीजों के लिए झालसा क्या कर रहा है। अदालत ने रिम्स निदेशक को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि अदालत को पत्र लिखने वाले परिजन के मरीज और अन्य मरीजों को प्रताड़ित ना किया जाए, इसका ख्याल रखा जाए।