कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष विधायक बंधु तिर्की ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जिला में सरकारी वकील के रूप में आदिवासी- मूलवासी अधिवक्ताओं की नियुक्ति कर समुचित प्रतिनिधित्व देने की मांग की है।
श्री तिर्की ने अपने पत्र में कहा है की सरकारी वकील के नियुक्ति के दौरान आदिवासी-मूलवासी अधिवक्ताओं विशेषकर सी.एन. टी/ एस.पी.टी एक्ट तथा स्थानीय कानून के जानकार के नियुक्ति कर झारखंड राज्य गठन के उद्देश्यों को धरातल पर उतारा जा सकता है। जिससे झारखण्डी हितों की रक्षा न्याय पटल के स्तर तक हो सके।
सरकारी नौकरी में आदिवासी मूलवासी जो आरक्षित वर्ग के हैं उनके लिए नियुक्तियों में पदवार संवैधानिक आरक्षण का प्रावधान किया गया है तदनुसार झारखंड में आरक्षण की व्यवस्था इस प्रकार है।
1.अनुसूचित जनजाति(26%)
2.अनुसूचित जाति(7.5%)
3.अन्य पिछड़ा वर्ग(14%)
4.आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग(10%)
इस प्रकार से राज्य के प्रत्येक जिले में 1×24 सरकारी वकील तथा सहायक सरकारी वकील 4×24-96 झारखंड बिजली बोर्ड में कुल सरकारी वकील-19, तथा राज्य सरकार के सभी विभागों में कम से कम दो-दो रिटेनर कौंसिल(SOF) बनाने के लिए नियुक्त होते हैं साथ ही हाउसिंग बोर्ड, तेनुघाट बिजली निगम एवं अन्य सरकारी निकायों में सरकारी वकील बहाल होते हैं। झारखंड के सभी जिलों में पदस्थापित सरकारी वकीलों ( गवर्नमेंट प्लेडर) या असिस्टेंट गवर्नमेंट प्लेडर को देखें तो किसी भी जिले में सरकारी आदिवासी वकील नहीं है। आज जिस प्रकार पूरे झारखंड राज्य में आदिवासी जमीन की लूट बदस्तूर जारी है क्योंकि सी.एन. टी और एसपीटी एक्ट के तहत (डिप्टी कमिश्नर) जमीन संबंधी मुकदमे (चाहे सिविल कोर्ट में हो या फिर एक्सक्यूटिव कोर्ट) में पार्टी बनती है। जिसे सरकारी वकील के द्वारा रिप्रेजेंट किया जाता है पर चूंकि सरकारी वकील आदिवासी नहीं होता है इसलिए अक्सर वह मुकदमा में आदिवासी पक्ष के खिलाफ आदेश पारित हो जाता है।
श्री तिर्की ने कहा कि अक्सर इन सरकारी वकील तथा सहायक सरकारी वकील के लिए नियुक्त उन निगम, बोर्ड एवं अन्य सरकारी निकायों के अधिकारियों के नजदीकी या उनके परिवार के सदस्य नियुक्त होते हैं आज वकालत के पेशे में आदिवासी-मूलवासी अधिवक्ताओं की जरूरत है।