Wednesday, April 24, 2024
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गोड्डा: कालाज़ार उन्मूलन अभियान में समुदाय कर रहा है सहयोग

गोड्डा: कालाज़ार एक वेक्टर जनित रोग है जिसका संक्रमण बालू मक्खी द्वारा होता है। यह रोग बालू मक्खी द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलाता है। कालाज़ार एक जानलेवा बीमारी है मगर समय पर और समुचित इलाज से यह बिलकुल ठीक हो सकती है। दो सप्ताह से ज्यादा से बुखार होना, तिल्ली और जिगर बढ़ना, कालाज़ार के कुछ लक्षण हैं।

गोड्डा जिले में कालाजार उन्मूलन अभियान चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत सभी घरों में एसपी पाउडर के छिड़काव के साथ ग्रामीणों के स्वास्थ्य की जांच भी की जा रही है। कीटनाशक का छिड़काव कोविड-19 के आदर्श मानकों तथा सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करते हुए किया जा रहा है। विभाग द्वारा ब्लॉक एवं जिला स्तर पर मॉनीटरिग की जा रही है। बातचीत के दौरान मलेरिया एवं कालाजार विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रति 10 हजार पर एक से कम रोगी बाले क्षेत्र को सामान्य क्षेत्र में माना जाता है।

स्वास्थ्य विभाग और समुदाय जिस तरह से कालाजार अभियान में सहयोग कर रहा है, उससे जल्द ही गोड्डा में कालाजार रोग पर पूर्ण नियंत्रण पा लिया जाएगा। बाघमारा की मुखिया मीना मुर्मू ने बताया कि वह बाघमारा गांव से हैं और उनके गांव के दो अलग- अलग टोलों में कालाजार के मरीज मिलते थे। उन्होंने कहा कि 2019-20 में कालाजार के चार से पांच केस हमारे यहां थे, लेकिन अब एक भी नया केस सामने नहीं आया है और जो पुराने मरीज थे वे ठीक हो चुके हैं।

जिले के भीबीडी कंसलटेंट हेमंत कुमार भगत ने बताया कि हम सबके प्रयासों के साथ ही कालाजार अभियान में लोगों का भी बहुत सहयोग है और यही कारण हैं कि वर्ष 2020 में कालाजार के 87 मरीज़ मिले थे और सबको उचित इलाज मिला और सब ठीक हो गए। इस बार भी अभी तक कालाजार के 30 मरीज़ मिले थे, सब ठीक हो चुके हैं। हमारा कालाजार मरीजों को ढूँढने का अभियान निरंतर जारी है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने यह भी बताया कि अब कालाजार बीमारी का इलाज नयी तकनीक से मात्र एक दिन में किया जाता है, साथ ही कालाज़ार प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले लोगों से अपने घर पर छिड़काव करवाने समय समुदाय के लोग निम्न बातों का ध्यान रख रहें हैं।

• छिड़काव से पहले घर के सभी कमरों को खाली कर देते हैं।
• घर के सभी कमरों और बथानों में कीटनाशक का छिड़काव अवश्य करवाते हैं।
• छिड़काव के बाद कम से कम 10 हफ्तों तक दीवारों पर मिट्टी की लिपाई- पुताई नहीं करते हैं क्योंकि वे जागरूक हो चुके हैं कि इससे कीटनाशकों का प्रभाव कम हो जाता है।

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