Monday, May 6, 2024
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Independence Day Special: जब पहले बजी शहनाई, फिर नेहरू ने फहराया तिरंगा

बदरुद्दीन तैयबजी को 11 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने 3 क्लाइव रोड (अब मोतीलाल नेहरू रोड) के सरकारी आवास में बुलाया। निर्देश दिए कि जब प्रधानमंत्री लाल किले पर झंडा फहराएं, तब उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई बज रही हो। निर्देश प्रधानमंत्री की तरफ से आए थे, इसलिए सवाल तो हो ही नहीं सकता था। 1934 बैच के आईसीएस बदरूद्दीन साहब ने उस्ताद की तलाश शुरू की। तब मोबाइल या इंटरनेट का जमाना नहीं था। लैंडलाइन फोन भी गिनती के होते थे। उस्ताद को उनके ठिकानों पर खोजा गया। तब वे बनारस से कहीं गए हुए थे। वे घुमक्कड़ थे। हालांकि 13 अगस्त को प्रशासन ने उन्हें गंगा किनारे अपने मित्रों के साथ खोज लिया।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से अफसरों ने कहा कि आपको दिल्ली चलना है। आपको पंडित नेहरू के लालकिले से ध्वजारोहण करने के बाद शहनाई बजानी है। उस्ताद तैयार हो गए। उन्हें एक दिन पहले एयरफोर्स के डकोटा विमान से दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट पर लाया गया। उन्हें ठहराया गया सुजान सिंह पार्क में। तब सुजान सिंह पार्क के कुछ फ्लैट सरकार ने किराए पर लिए थे।

बदरुद्दीन तैयबजी ने बताया था कि नेहरू चाहते थे कि वे पहले तिरंगा फहराएं, उसके बाद शहनाई वादन हो। पर उस्ताद तो उस्ताद थे। अड़ गए। कहने लगे कि मैं पहले शहनाई बजाना शुरू करूंगा और फिर तिरंगा फहराइये। नेहरू को उस्ताद की बात माननी पड़ी। उस शहनाई वादन के बीच तिरंगे को पहली बार लाल किले पर फहराया जाना देश के लिए यादगार पल थे।

दरअसल तिरंगे का बदरूद्दीन साहब ने बहुत खास संबंध रहा। संविधान सभा ने जब तिरंगे में अशोक चक्र रखने के प्रस्ताव पर मोहर लगा दी, तो संविधान सभा के मेंबर सेक्रेटरी और बदरूद्दीन से कहा गया कि वे एक नमूना झंडा बनवाकर दिखाएं। उन्होंने यह नमूना झंडा कनॉट प्लेस में मशहूर एससी शर्मा टेलर्स से बनवाया। ये रीगल बिल्डिंग में अब भी है। उसे देखने के बाद संविधान सभा ने उस पर अपनी अंतिम मोहर लगाई। बदरूद्दीन तैयब का कुछ साल पहले निधन हो गया था।

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