हेसागढ़ काली मंदिर में धूमधाम से मंगलवार को विधि-विधान के साथ मां विपत्तारिणी की पूजा की गई। यह पूजा औरत पति, संतान और पूरे परिवार के कल्याण के लिए करती हैं। रथयात्रा के बाद जो पहला मंगलवार और शनिवार पड़ता है, उसमें यह पूजा करने की परंपरा है। ये पूजा खास कर बंगाली समाज के लोग करते है। इस पूजा को भव्य रूप से पंडित जी धीरेन मुखर्जी और उत्तम बनर्जी के द्वारा किया गया साथी 40 से ऊपर श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव से पूजा किया।
पंडित जी धीरेन मुखर्जी ने विपत्तारिणी पूजा के बारे में विशेष बातें बताई विपत्तारिणी मां काली का ही एक अन्य स्वरूप हैं। विपत्तारिणी पूजा में संख्या ‘13 का विशेष महत्व है। इस पूजा में वरदसूत्र (रक्षासूत्र) बांधने की परंपरा है, जो 13 दूब से तैयार किया जाता है। महिलाओं ने उपवास रखकर इसे तैयार किया। मान्यता है कि यह सूत्र बांधने से पति व संतान पर आनेवाली हर विपत्ति टल जाती है। जिनके विवाह में कठिनाई आ रही हो, वे भी इस दिन मां विपत्तारिणी से मनोकामना पूर्ति के लिए पूजा-आराधना करते हैं। विपत्ततारिणी मंत्र- ऊं ह्रीं विपत्तारिणी दुर्गायै नम:, के मंत्रोच्चार से श्रद्धालुओं मां से हर तरह की विपत्ति हरने की प्रार्थना की।
मां विपत्तारिणी को 13 तरह के फल, फूल, मिठाई, पान, सुपारी व दूब का भोग लगाया गया। काली मंदिर में सुबह 6.00 बजे से श्रद्धालुओं का जुटना शुरू हो गया। दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को महिलाओं ने व्रत तोड़ा।