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Wednesday, February 12, 2025
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पत्नी साथ न रहे तो भी देना होगा भरण-पोषण, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी अपने पति के साथ नहीं रहती है, तो भी उसे भरण-पोषण का हक हो सकता है, बशर्ते उसके पास अलग रहने का ठोस और वैध कारण हो।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस निर्णय के तहत भरण-पोषण से जुड़े एक महत्वपूर्ण कानूनी विवाद का समाधान किया। सवाल यह था कि अगर पति वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश प्राप्त करता है, और पत्नी उस आदेश का पालन नहीं करती है, तो क्या ऐसे में पति भरण-पोषण देने से बच सकता है।

परिस्थितियों के आधार पर होगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का निर्णय कठोर नियमों पर नहीं, बल्कि हर मामले की अलग-अलग परिस्थितियों और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पत्नी के पास साथ रहने से इनकार करने का ठोस कारण है, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार मिलना चाहिए।

झारखंड के दंपति का मामला

यह मामला झारखंड के एक दंपति से जुड़ा है। इनकी शादी 2014 में हुई थी, लेकिन 2015 में वे अलग हो गए। पति ने पारिवारिक अदालत में दांपत्य अधिकारों की बहाली की याचिका दाखिल करते हुए आरोप लगाया कि पत्नी बिना किसी कारण के घर छोड़कर चली गई और वापस नहीं लौटी। उधर, पत्नी ने पति पर दहेज की मांग और प्रताड़ना का आरोप लगाया।

पारिवारिक अदालत ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन पत्नी ने आदेश का पालन करने के बजाय भरण-पोषण के लिए याचिका दायर कर दी। अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह हर महीने 10,000 रुपये पत्नी को भरण-पोषण के रूप में दे।

उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

पति ने इस आदेश को झारखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जहां फैसला पत्नी के खिलाफ गया। इसके बाद पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय का आदेश पलट दिया और कहा कि महिला के आरोपों और दुर्व्यवहार के पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “भरण-पोषण के अधिकार का निर्धारण करते समय न्यायालय को मामले की समग्र परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा।”

न्याय का स्पष्ट संदेश

इस निर्णय के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि भरण-पोषण का अधिकार केवल वैवाहिक अधिकारों की बहाली से नहीं, बल्कि महिला के साथ हुए व्यवहार और उसके पास मौजूद वैध कारणों से निर्धारित होगा। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों और उनकी गरिमा की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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