Sunday, May 5, 2024
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मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा और शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के नाम क्रमशः रांची रेलवे स्टेशन एवं हटिया रेलवे स्टेशन का नामांकरण किया जाय-बंधु तिर्की

झारखण्ड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष विधायक बंधु तिर्की ने रेलवे मंत्री भारत सरकार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर रांची रेलवे स्टेशन का नाम जयपाल सिंह मुंडा और हटिया स्टेशन का नाम शहीद विश्वनाथ शाहदेव के नाम नामांकरण करने की मांग की है।
श्री तिर्की ने अपने पत्र में कहा कि झारखंड की पावन धरती ने एक से बढ़कर एक महापुरुषों, वीरों और शहीदों को जन्म दिया है वैसे महापुरुषों की गणना में जयपाल सिंह मुंडा और वीर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है।

जयपाल सिंह मुंडा का भारतीय जनजातियों और झारखंड अलग राज्य आंदोलन में अग्रणी भूमिका के फल स्वरुप मारंग गोमके(बड़ा मालिक) से शुशोभित किया जाता है। जयपाल सिंह मुंडा राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद, खिलाड़ी और कुशल प्रशासक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका मानना था कि आदिवासी यहां के मूल निवासी है अतः वे जनजाति नहीं आदिवासी हुए उनका जन्म 03 जनवरी 1903 को खूंटी के टकरा पहान टोली में हुआ था। यह देश के पहले आदिवासी थे जिन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने का गौरव प्राप्त है लेकिन हॉकी के मोह के कारण उन्होंने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया, ये ब्रिटेन में वर्ष 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे इनके नेतृत्व और कप्तानी में भारत ने 1928 के ओलंपिक का पहला स्वर्ण पदक हासिल किया था अंतरराष्ट्रीय हॉकी में जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में देश को पहला गोल्ड मेडल मिला था 1946 में खूंटी ग्रामीण क्षेत्र से जीत कर संविधान सभा के सदस्य बने। जयपाल सिंह मुंडा ने जिस तरह से आदिवासियों की इतिहास, दर्शन और राजनीति को प्रभावित किया जिस प्रकार झारखंड आंदोलन को अपने वक्तव्यों, सांगठनिक कौशल और रणनीतियों से भारतीय राजनीति और समाज में स्थापित किया वह अद्वितीय है।

उसी प्रकार अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने अपने नेतृत्व और पराक्रम से अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का जन्म 12 अगस्त 1817 ई को वर्तमान के रांची जिला अंतर्गत बड़का गढ़ की राजधानी शतरंजी में हुआ था पिता की मृत्यु के उपरांत विश्वनाथ शाहदेव ने बड़कागढ़ की गद्दी संभाली।

उस दौरान तत्कालीन बिहार में अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ चिंगारी सुलग रही थी अंग्रेजों ने टैक्स एवं लगान से जनता को तबाह किया हुआ था ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव छोटानागपुर की जनता एवं जमींदारों को ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति के लिए उलगुलान छेड़ दिया। इस अभियान में पांडे बृजभूषण सिंह, चामा सिंह, शिव सिंह, रामलाल सिंह और विजय राम सिंह जैसी हस्तियों को नेतृत्व ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने किया, मंगल पांडे के नेतृत्व में मेरठ छावनी में 1857 में कारतूस काण्ड विद्रोह हो चुका था। रामगढ़ में ब्रिटिश छावनी और रामगढ़ बटालियन में भी विद्रोह की आग सुलग रही थी। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने वहां शेख भिखारी और उमराव सिंह को भेजा। इनके संदेश के बाद रामगढ़ बटालियन में भी विद्रोह की भीतरी तैयारी शुरू हो गई। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव सैन्य संचालन की योजना बनाने लगे। 1855 में ही अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंका गया अपने राज्य को अंग्रेजी सत्ता से स्वतंत्र घोषित कर दिया। 16 अप्रैल 1858 को रांची जिला स्कूल के मुख्य द्वार के समक्ष कदम वृक्ष में इन्हें फांसी दे दी गई झारखंड की इन दोनों सपूतों की गाथा इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों से उल्लेखित है एक ओर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की वीर गाथा, आत्म बलिदान और अदम्य साहस ने राज्य को ऊर्जावान शक्ति प्रदान की वहीं मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने खिलाड़ी, साहित्यकार लेखक, पत्रकार, संपादक, शिक्षाविद एवं कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्धि पायी और एक महान जननायक के रूप में विश्व विख्यात हुए ऐसे महान विभूतियों के नाम रांची रेलवे स्टेशन एवं हटिया रेलवे स्टेशन का नामांतरण कर झारखण्डियों को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करें।

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