झारखंड की माटी से जन्मा वह योद्धा, जिसने आदिवासी समाज की आवाज़ को दिल्ली तक पहुंचाया — वह हैं शिबू सोरेन। आज जब उनकी तबीयत नाजुक बताई जा रही है, पूरा झारखंड उनके स्वास्थ्य और लंबी उम्र की दुआ कर रहा है।
शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि संघर्ष और जन-जागरण का प्रतीक रहे हैं। उन्होंने झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा दी और आदिवासी समाज को अधिकार दिलाने के लिए जिंदगी भर लड़ाई लड़ी।
🔥 क्रांति की शुरुआत: जब ‘गुरुजी’ बना आवाज़
1970 के दशक में जब झारखंड अलग राज्य की मांग केवल एक सपना थी, उस समय शिबू सोरेन ‘गुरुजी’ ने इसे जन-आंदोलन में बदल दिया। उन्होंने “धनखोरी आंदोलन” चलाकर जमींदारी प्रथा और बाहरी शोषणकारियों के खिलाफ मोर्चा खोला।
उनकी आवाज़ बन गई गरीबों, किसानों, और वनवासियों की आवाज़। शोषित समाज को हक दिलाने के लिए उन्होंने राजनीतिक मंच से लेकर सड़कों तक संघर्ष किया।
🏛️ राजनीति में आदिवासी अस्मिता की पहचान
शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक हैं। वे तीन बार केंद्रीय मंत्री रहे और झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। उन्होंने दिखा दिया कि आदिवासी समाज सिर्फ वोट बैंक नहीं, बल्कि नेतृत्व करने की भी ताकत रखता है।
❤️ पूरा झारखंड कर रहा है दुआ
हाल के दिनों में शिबू सोरेन की तबीयत खराब होने की खबर ने हर झारखंडवासी को भावुक कर दिया है। सोशल मीडिया से लेकर गांव की चौपालों तक, लोग गुरुजी की सलामती के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, और आम जनता का एक ही स्वर है —
“गुरुजी को कुछ न हो, उनका आशीर्वाद हम सब पर बना रहे।”
शिबू सोरेन – एक जीवित किंवदंती
शिबू सोरेन सिर्फ एक नाम नहीं, वह झारखंड की आत्मा हैं। वह आंदोलन की ज्वाला हैं, जिन्होंने सत्ता के गलियारों तक आदिवासी आवाज पहुंचाई। आज जब वह बीमारी से जूझ रहे हैं, तो हर झारखंडी की जुबां पर यही प्रार्थना है —
“गुरुजी जल्दी स्वस्थ हों, क्योंकि आपके बिना झारखंड अधूरा है।”