‘One Nation One Election’ को लेकर देश की राजनीति गरमाई हुई है। इससे जुड़े संविधान संशोधन विधेयक को भले ही लोकसभा से स्वीकृति मिल गई है, लेकिन इसको लागू करने में कई साल लग सकते हैं। संसद से ये बिल पास होने के बाद भी माना जा रहा है कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं का चुनाव 2034 में ही हो पाएंगे।
इसे लागू करने के लिए 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभाओं चुनावों को 2034 के लोकसभा चुनावों तक की अवधि के लिए कराया जा सकता है। ऐसा इसलिए ताकि 2034 में लोकसभा के कार्यालय के साथ ही सभी विधानसभाओं का कार्यकाल खत्म हो जाए और एक देश एक चुनाव को लागू किया जा सके।
देश में पहले भी हो चुके एक साथ चुनाव
One Nation One Election का विचार कोई नया नहीं है, देश में पहले भी एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव होते थे। दरअसल, साल 1951-52 में देश में पहली बार चुनाव कराए गए थे। उस दौरान लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे। हालांकि, 1967 के बाद से परंपरा बिगड़ गई। कहीं राज्य की विधानसभा को भंग करना पड़ा, तो कभी लोकसभा चुनाव पहले ही हो गए। हालात ऐसे हो गए हैं कि अब देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होता ही है।
कैसे उठा एक साथ चुनाव कराने का मुद्दा?
- 2014 में नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में भाजपा सत्ता में आई तो एक देश एक चुनाव का मु्ददा जोर शोर से उठने लगा। पीएम मोदी ने भी इसे देश के लिए जरूरी बताया।
- इसके बाद 2015 में लॉ कमीशन ने सुझाव दिया कि इसे लागू करने से देश को करोड़ों रुपये की बचत होगी।
- देश में अलग-अलग चुनाव करवाने को लेकर बार-बार सवाल उठने के बाद यह विचार आया कि देश में सभी चुनाव एकसाथ होने चाहिए। इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए पिछले साल सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया।
- इस कमेटी को एक देश एक चुनाव की व्यवहार्यता पर विचार करने को कहा गया था।
One Nation One Election पर अब क्या हुआ?
हाल ही में इस कमेटी की रिपोर्ट को मोदी कैबिनेट ने स्वीकार किया गया और इससे जुड़े दो बिल लोकसभा में पेश किए गए। पहला संविधान (129वां संशोधन) बिल है और दूसरा केंद्र शासित कानून (संशोधन) बिल 2024, जो पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव करवाने से संबंधित है।
लोकसभा स्पीकर ने अब इन बिलों पर विस्तृत चर्चा करने और सर्वसम्मति बनाने के लिए इन्हें संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया है।
एकसाथ चुनाव करवाने के क्या हैं फायदे?
- कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक देश एक चुनाव के कई फायदे गिनाए।
- एक साथ चुनाव होने से शासन में निरंतरता आएगी।
- कमेटी ने ये भी कहा कि विभिन्न राज्यों में चुनावों के चलते राजनीतिक दल और उनके नेता और सरकारों का ध्यान चुनावों पर ही रहता है। एक साथ चुनाव होगा तो फोकस भी लोगों के लिए जनकल्याणकारी नीतियों को लागू करने पर रहेगा।
- अधिकारी काम पर ध्यान दे पाएंगे चुनाव की वजहों से पुलिस सहित अनेक विभागों के पर्याप्त संख्या में कर्मियों की तैनाती करनी पड़ती है। एकसाथ चुनाव कराए जाने से बार- बार तैनाती की जरूरत कम हो जाएगी, जिससे सरकारी अधिकारी अपने मूल दायित्यों पर फोकस कर पाएंगे।
- चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता के क्रियान्वयन से नियमित प्रशासनिक गतिविधियां रुक जाती हैं। एक साथ चुनाव कराने से आदर्श आचार संहिता के लागू होने का समय कम होगा और इससे पॉलिसी पैरालिसिस कम होगा।
- कमेटी ने ये भी कहा कि वित्तीय बोझ में भी कमी आएगी और मैनपॉवर, उपकरणों और सुरक्षा उपायों के प्रबंधन पर भी कम खर्च होगा।
5 देशों में एक देश एक चुनाव है लागू
- द. अफ्रीका
- स्वीडन
- इंडोनेशिया
- फिलीपींस
- बेल्जियम
शुरुआत में आएंगी आर्थिक समेत कई चुनौतियां
- चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, शुरू में सिर्फ ईवीएम की खरीद पर ही डेढ़ लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। यहां बता दें कि 2024 के लोकसभा चुनावों में लगभग एक लाख करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
- 2034 में अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो सिक्योरिटी फोर्स में 50 फीसद बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। इसका मतलब है कि करीब 7 लाख कर्मियों की जरूरत होगी।