Thursday, May 2, 2024
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झारखण्ड में उन्नत खेती की भरपूर संभावना, दीर्घकालीन क़ृषि नीति जरुरी : डॉ.एस.सी.प्रसाद

रांची. बिरसा क़ृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत विश्वविद्यालय प्राध्यापक सह मुख्य वैज्ञानिक, पौधा प्रजनन एवं आनुवंशिकी सह निदेशक बिरसा क़ृषि विश्वविद्यालय डॉ.सतीश चन्द्र प्रसाद ने कहा है कि झारखण्ड स्थापना के 22 वर्षों बाद भी इस प्रदेश की अपनी दीर्घकालीन क़ृषि नीति का अभाव खटकता है. डॉ.प्रसाद ने कहा कि उर्वर ज़मीन और मेहनतकश किसानों के कारण खेती के क्षेत्र में झारखण्ड की संभावना इतनी उज्जवल है कि यदि योजनाबद्ध होकर वैज्ञानिक विधि से खेती की जाये तो खनिज संसाधन एवं उद्योग से होनेवाला आर्थिक लाभ फीका पड़ जायेगा.

बिरसा क़ृषि विश्वविद्यालय के 42 वें स्थापना दिवस पर आयोजित एक विशेष समारोह में झारखण्ड के राज्यपाल श्री रमेश बैस के हाथों सम्मानित होने के बाद डॉ.प्रसाद ने कहा कि अपने विश्वविद्यालय प्रांगण में सम्मानित होना अद्भुत ख़ुशी की बात है और इसके लिये उन्होंने राज्यपाल महोदय का आभार व्यक्त किया.

बीएयू से चावल अनुसन्धान एवं निदेशक फार्म एवं बीज प्रजनन के पद से 1997 में सेवानिवृत्ति के बाद भी 18 वर्षों तक कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) की इंटरनेशनल फण्ड ऑफ़ एग्रीकल्चर डेवलपमेंट (इफाड) के तहत अपनी समर्पित सेवा देनेवाले डॉ.प्रसाद ने विशेष रूप से झारखण्ड में संथाल से कोल्हान तक विविध जिलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की सहकारिता एवं उनके कल्याण के लिये अनेक दूरगामी कार्य किये. 500 से भी अधिक शोधपत्र के साथ ही चावल अनुसन्धान पर अनेक पुस्तकों के लेखक डॉ.प्रसाद ने चावल की वैसी 52 किस्मों का विकास किया जो विशेषकर पठारी क्षेत्र में कहीं कम सिचाई में अधिक उपज देती है.

क्रीप की ग्रामीण विकास ट्रस्ट के तहत कम्युनिटी फार्मिंग को बढ़ावा देने के प्रति समर्पित रहे डॉ.प्रसाद के अनुसार भारत की आत्मा गाँवों में बसती है और कृषि पर ही हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरीके से निर्भर है.

प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स में पीएचडी की उपाधि प्राप्त डॉ.प्रसाद ने स्वयं को पूरी तरीके से कृषि क्षेत्र विशेषकर चावल की नई प्रजातियों के प्रजनन के लिए समर्पित कर दिया. डॉ.सतीश चंद्र प्रसाद की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि उन्होंने अपनी शैक्षणिक एवं अनुसन्धान उपलब्धियों के लिये देश-विदेश में अनेक मेडल, सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र प्राप्त किये.

केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान मनीला, फिलीपींस में अपने दायित्व का निर्वहन कर चुके डॉ.प्रसाद ने अपना सम्पूर्ण जीवन, ग्रामीण किसानों और खेती के विकास के लिए समर्पित कर दिया. क़ृषि के हित में अपने दिल, दिमाग और ज्ञान का सटीक सदुपयोग करनेवाले डॉ.सतीश चंद्र प्रसाद ने यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्स, लंदन से इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट के तहत भी काम किया. जीबीटी अर्थात ग्रामीण विकास ट्रस्ट के साथ यह एक संयुक्त परियोजना थी.

जीवन भर अपने अनुसंधान के दौरान डॉ.प्रसाद ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के किसानों की आवश्यकताओं-आकांक्षाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी. अपने अनुसंधान के सिलसिले में इन्होंने यूरोप, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका के अनेक देशों व अमेरिका के अनेक प्रान्तों के अलावे तंजानिया, ज़ाम्बिया, नाइज़ीरिया जैसे अफ्रीकी देशों के साथ ही जापान, कोरिया, चीन, थाईलैंड आदि एशिया के अनेक देशों में शोध किया और किसानों के हित में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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