Thursday, May 2, 2024
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18 दिनों के बच्चे से लेकर 103 वर्षों के लोगों तक का नेत्रदान कश्यप मेमोरियल आई बैंक में हुआ है

कश्यप मेमोरियल आई हॉस्पिटल के सभागार में आई डोनेशन अवेयरनेस क्लब के द्वारा 36वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा के अंतर्गत आई डोनेशन अवेयरनेस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड के माननीय राज्यपाल श्री. रमेश बैस जी एवं विशिष्ट अतिथि झारखण्ड के स्वास्थ्य मंत्री श्री. बन्ना गुप्ता थे। आई डोनेशन अवेयरनेस क्लब के अध्यक्ष श्री.अनुज सिन्हा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। डॉ.भारती कश्यप ने आई डोनेशन अवेयरनेस क्लब के सदस्यों का परिचय माननीय मुख्य अतिथि राज्यपाल महोदय से कराया। कार्यक्रम के दौरान मृत्यु उपरांत अपने परिजनों के नेत्रदान करने वाले परिवारों बेबी अपराजिता, नर्मदा देवी गाड़ोदिया, शैलेश कोठारी, साधना जैन और कमला रानी भाटिया को राज्यपाल श्री. रमेश बैस जी एवं स्वर्गीय प्रभात कुमार तुलस्यान, शारदा देवी लोहिया, द्रोपदी देवी चौधरी, इंद्रा देवी जैन और
रश्मि मारू को माननीय स्वास्थ्य मंत्री के द्वारा सम्मानित किया गया।

सन 1995 में संयुक्त बिहार-झारखण्ड का पहला नेत्र प्रत्यारोपण डॉ. बी पी कश्यप और डॉ. भारती कश्यप द्वारा स्व. हरिप्रसाद के मृत्योपरांत किए गए स्थानीय नेत्रदान से किया गया था। यह आई बैंक राज्य का प्रथम एक्टिव आई बैंक है जो पिछले 26 वर्षों से सफलतापूर्वक कॉर्निया जनित दृष्टिहीनों को रौशनी दे रहा है। कश्यप मेमोरियल आई बैंक द्वारा अभी तक 606 कॉर्निया के बीमारी से ग्रसित मरीजों को नेत्र प्रत्यारोपण से लाभान्वित किया है।

18 दिनों के बच्चे से लेकर 103 वर्षों के लोगों तक का नेत्रदान कश्यप मेमोरियल आई बैंक में हुआ है

पुरे देश में अप्रैल 2019 से लेकर मार्च 2020 तक 50,953 नेत्रदान हुए जबकि कॉर्निया प्रत्यरोपण केवल 27,075 हुए। 50 प्रतिशत दान में मिले कॉर्निया बर्बाद हो गए। सबसे बड़ी समस्या है कि जो नेत्र दान में मिले हैं उनकी सुरक्षा की जाए और उनको प्रत्यारोपण के लिए काम में लाया जाए। इसकी वजह यह है कि सभी आई बैंक संसधान युक्त नहीं होते, उनके पास कॉर्निया को सुरक्षित रखने के लिए अच्छे स्टोरेज मीडियम नहीं होते, उनके पास अच्छे कॉर्निया सर्जन का अभाव होता है, देश के सभी आई बैंक कॉर्निया डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम से नहीं जुड़े हैं। ऐसी स्थिति में जिन आई बैंक के पास ज्यादा कॉर्निया होती है मगर प्रत्यारोपण कम होता है वहां से दुसरे ऐसे आई बैंक तक कॉर्निया नहीं पहुंच पाती जहां पर कॉर्निया जनित दृष्टिहीन मरीजों की लंबी प्रतीक्षा सूची है मगर कॉर्निया का दान कम है।कॉर्निया डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के नेटवर्क से देश के सभी एक्टिव 109 आई बैंकों को जोड़कर काफी हद तक कॉर्निया को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।

कश्यप मेमोरियल आई बैंक की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. भारती कश्यप ने बताया कि हमें ख़ुशी है हमारे पास कॉर्निया जनित दृष्टिहीनता से प्रभावित मरीजों की लंबी सूची है, विशेष प्रकार के नेत्र प्रत्यारोपण में प्रशिक्षित FRCS एवं ICO की अंतर्राष्ट्रीय डिग्री से सम्मानित डॉ निधि गडकर कश्यप की भी टीम है जिनके द्वारा पिछले दो वर्षों से ज्यादातर नेत्र प्रत्यारोपण अत्याधुनिक पद्धति डीसेक जो एक प्रकार की लैमेलर केराटोप्लास्टी है, द्वारा किया जा रहा है। जिसका फायदा ज्यादा से ज्यादा गरीब मरीजों को आयुष्मान भारत के द्वारा मिल रहा है।

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि नेत्रदान एक धार्मिक काम है। क्योंकि ऐसे काम आत्मा से किए जाते हैं। जब आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है, तभी नेत्रदान जैसे काम होते हैं। इसे बढ़ावा देने और इसके सफल संचालन के लिए मैं डॉ बी पी कश्यप, डॉ भारती कश्यप, उनके पुत्र डॉ विभूति और उनकी पुत्रवधू का धन्यवाद करना चाहता हूँ। क्योंकि कोरोना काल में भी आपने 120 लोगों के नेत्र प्रत्यारोपण किए।

झारखंड में क़रीब डेढ़ करोड़ लोग ऐसे हैं, जो देख नहीं सकते। इनमें से 75 प्रतिशत लोगों को ठीक किया जा सकता है। देश में 109 आई बैंक हैं लेकिन आपसी समन्वय नहीं होने के कारण कहीं कहीं कार्निया रहने के बाद हम उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं। मैं सबसे कम उम्र की आई डोनर अपराजिता की माँ का भी धन्यवाद करना चाहता हूँ कि उन्होंने इतना साहसिक निर्णय लिया।

मुझे गर्व है कि ऐसे नेक काम में प्रेस की भी भागीदारी है। हम आई बैंकों के कोआर्डिनेशन की कमियों को दूर करेंगे और राजनीतिक अनुभव के धनी राज्यपाल जी के दिशानिर्देश पर काम कर हमारी सरकार राज्य की तरक़्क़ी का रास्ता तैयार करेगी।

राज्यपाल ने कहा कि हर छोटा काम बड़ा होता है। अगर कोई लंबे समय से अंधेरे में हो और उसे अचानक सबकुछ दिखने लगे, तो उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। दक्षिण अफ़्रीका भ्रमण के दौरान मैं एक सोने की खदान में काम करने वाले एक मज़दूर से मिला, जो छह महीने से खदान में ही काम कर रहा था। छह महीने बाद जब वह खदान से बाहर आया और उसने सूरज की रौशनी देखी, तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब कल्पना कीजिए कि जिसको पहले कुछ नहीं दिखता हो, उसे आँख मिल जाए तो उसे कितनी ख़ुशी होगी।

डॉ भारती ने मुझे बताया कि नेत्रदान के प्रति जागरूकता उतनी नहीं है। लोग भावनाओं में बह जाते हैं लेकिन अगर भावना से ऊपर उठकर सोचें, तो कितना बड़ा काम हो सकता है। किसी को आँखें मिल जाएँ इससे बड़ी बात कुछ और नहीं हो सकती। मेरे कई दोस्त डॉक्टर हैं और मेरे बड़े भाई भी डॉक्टर थे। मैं आप सबकी सेवा भावना को अच्छी तरह समझ सकता हूँ। आपने 124 नेत्र प्रत्यारोपण किए हैं। मैं डॉ भारती और उनकी पूरी टीम को धन्यवाद देना चाहता हूँ।

आज संपूर्ण विश्व नोबेल कोरोना वायरस की समस्या से ग्रसित है। हमारा देश और प्रदेश भी इन चुनौतियों का सामना कर रहा है। हमने कई अपने लोगों को खो दिया है। इन विषम परिस्थितियों में भी कश्यप मेमोरियल आई हॉस्पिटल ने जो कार्य किए हैं, वह एक उदाहरण है।

विश्व के दृष्टिबाधित लोगों की एक बड़ी आबादी हमारे देश में रहती है। जो चिंता का विषय है। आँकड़ों के अनुसार 1.25 करोड़ लोग दृष्टिहीन हैं। इनमें से 30 लाख लोग नेत्र प्रत्यारोपण के माध्यम से दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं। कार्निया का सही रख रखाव नहीं होने पर बहुत से कार्निया ख़राब भी हो जाते हैं। इस सिस्टम को और विकसित और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है ताकि कार्निया की बर्बादी नहीं हो। आजकल बच्चे भी मोतियाबिंद जैसी बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। खेल खेल में उनकी आँखें ख़राब हो जा रही हैं। बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं। लिहाज़ा नेत्र चिकित्सकों को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। मैं नेत्रदान का निर्णय लेने वाले सभी लोगों और परिवारों का आभारी हूँ। आप हमारे प्रेरणास्रोत हैं।

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