Monday, April 29, 2024
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शारदीय नवरात्रि का पहला दिन, ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा

शारदीय नवरात्रि का पहला दिन, मां शैलपुत्री: शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो रहे हैं और घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और मां के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा देवी के मंडपो में पहले नवरात्र के दिन होती है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पार्वती के रूप में इनको भगवान शिव के पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। आइए आपको बताते हैं मां शैलपुत्री की पूजाविधि, मंत्र और भोग के बारे में विस्‍तार से…

माता शैलपुत्री का स्वरूप बेहत शांत और सरल है। माता के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल शोभा दे रहा है। मां अपने नंदी नामक बैल पर सवार होकर संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं इसलिए माता शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है और शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक भी हैं। माता शैलपुत्री ने घोर तपस्या करके ही भगवान शिव को प्रसन्न किया था। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं, जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती हैं और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है।

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। पूरे परिवार के साथ विधि-विधान के साथ कलश स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। माता शैलपुत्री की पूजा षोड्शोपचार विधि से की जाती है। इनकी पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। इसके बाद माता को कुमकुम और अक्षत लगाएं। इसके बाद सफेद, पीले या लाल फूल माता को अर्पित करें। माता के सामने धूप, दीप जलाएं और पांच देसी घी के दीपक जलाएं। इसके बाद माता की आरती उतारें और फिर शैलपुत्री माता की कथा, दुर्गा चालिसा, दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें। इसके बाद परिवार समेत माता के जयकारे लगाएं और भोग लगाकर पूजा को संपन्न करें। शाम के समय में भी माता की आरती करें और ध्यान करें।

नवरात्र में इस बार कलश स्थापना के लिए 2 शुभ मुहूर्त हैं। नवरात्र से पहले बारिश संकेत दे रही कि इस बार मां दुर्गा का आगमन हाथी पर हो रहा है। पंडितों का मानना है कि हाथी पर मां दुर्गा का आगमन धन-धान्य में बढ़ोतरी करता है। ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि सोमवार को घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:11 से 7:51 तक रहेगा। इसके बाद अभिजित मुहूर्त में भी घटस्थापना की जा सकती है। सुबह 11:48 से दोपहर 12:36 तक अभिजित मुहूर्त रहेगा। इस बार नवरात्र शुक्ल व ब्रह्म योग के अद्भुत संयोग में शुरू हो रहा है, जिसका फल उत्तम मिलता है। ज्योतिष के अनुसार, बारिश संकेत दे रही है कि नवरात्र में मां हाथी पर सवार होकर आएंगी। इससे अच्छी बारिश होगी और फसल भी अच्छी होगी। हर साल शारदीय नवरात्रि पर मां दुर्गा का आगमन विशेष तरीके से होता है। रविवार व सोमवार को हाथी पर, शनि व मंगलवार को घोड़े पर, बृहस्पति व शुक्रवार को डोले पर तथा बुधवार को नाव पर मां दुर्गा आती हैं। घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है। नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्ध मिलती है। डोले पर आती हैं तो उस वर्ष अनेक कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है।

माता शैलपुत्री से जुड़ी एक कहानी का उल्लेख यहां करना आवश्यक है। प्राचीनकाल में जब सती के पिता प्रजापति दक्ष यज्ञ कर रहे थे तो उन्होंने सारे देवताओं को इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन अपने जामाता भगवान महादेव और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। लेकिन सती की अपने पिता के यज्ञ में जाने की बहुत इच्छा थी। उनकी व्यग्रता देख शंकर जी ने कहा कि संभवत: प्रजापति दक्ष हमसे रुष्ट हैं इसलिए उन्होंने हमें आमंत्रित नहीं किया होगा। शंकरजी के इस वचन से सती संतुष्ट नहीं हुई और जाने के लिए अड़ गई। उनकी जिद देखकर भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती जब अपने पिता के घर पहुंची तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बाकी सदस्यों ने उनसे ठीक से बात नहीं की और व्यंग्यात्मक छींटाकशी भी की। दक्ष ने भी शंकर के प्रति कुछ बातें कहीं जो सती को उचित नहीं लगी। अपने पति का तिरस्कार होता देख उन्होंने योगाग्नि से अपने आप को भस्म कर लिया। जब शंकर को सती के भस्म होने के बारे में पता चला तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करवा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ और वे फिर से उनकी पत्नी बन गईं।

पर्वतराज हिमालय की पुत्र होने के कारण माता की पूजा और भोग में सफेद चीजों का ज्यादा प्रयोग करें। माता को सफेद फूल और सफेद वस्त्र ही अर्पित करें। इसके साथ ही माता को सफेद मिष्ठान का ही भोग लगाएं। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है। माता के इस स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्‍थर और पत्‍थर को सदैव अडिग माना जाता है।

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